Chandrayaan – 3 ने एक झटके में बदल दी भारत की तकदीर, दरवाजे पर हाथ बांधे खड़ी है दुनिया
चंद्रयान-3 ( Chandrayaan – 3) की सफल लैंडिंग के साथ ही भारत दुनिया के उन टॉप 4 देशों में शामिल हो गया है, जिन्होंने अतंरिक्ष में अपनी ताकत का लोहा मनवाया। अमेरिका, रूस और चीन जो अब तक अपने मून मिशन पर इतरा रहे थे, चंद्रयान 3 के सफल होते ही उन्हें अपनी सफलता कम लगने लगी है। भले ही भारत अपने मून मिशन में इन देशों से कुछ साल पीछे रह गया, लेकिन चंद्रमा के साउथ पोल पर सफल लैंडिंग कर उसने साबित कर दिया कि सफलता का रास्ते भले कठिन हो, लेकिन अगर ईमानदारी से कोशिश की जाए तो असंभव कुछ नहीं है।
चंद्रयान -3 की सफलता से ज्यादा उसके किफायती बजट ने दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा। हॉलीवुड की फिल्मों से भी कम बजट में भारत चांद पर पहुंच गया। अब इस मिशन के सफल होने के बाद दुनियाभर की निगाहें भारत की ओर उम्मीद से देख रही हैं। चंद्रयान 3 के कम बजट ने अमेरिका, चीन, रूस समेत दुनियाभर के देशों की दिलचस्पी इसरो के इस मिशन में बढ़ती जा रही है।
भारत का किफायती मून मिशन
जब दुनिया को पता चला कि भारत का चंद्रयान मात्र 615 करोड़ रुपये में चांद पर पहुंच गया, उनकी हैरानी बढ़ने लगी। खासकर चीन और अमेरिका जैसे देशों की आंखें फटी की फटी रह गई। जो देश अपने मून मिशन पर करोड़ों डॉलर खर्च कर रहे हैं, चंद्रयान 3 के बजट को जानने के बाद थोड़े हैरान- परेशान हैं। दुनिया भर के दिग्गज कारोबारियों, स्पेस संस्थाओं ने इसरो के इस मिशन की तारीफ की। एक्स के सीईओ एलन मस्क (Elon Musk) ने भी वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं के प्रयासों की सराहना की है। Chandrayaan – 3 का बजट हॉलीवुड के क्रिस्टोफर नोलन की फिल्म ‘इंटरस्टेलर’ से भी कम है। अगर आप बाकी देशों के मून मिशन से इसकी तुलना करेंगे तो समझ जाएंगे कि क्यों अब पूरा विश्व भारत की ओर टकटकी लगाकर देख रहा है।
हमने तो नासा को भी पछाड़ दिया
Chandrayaan – 3 का अनुमानित बजट 615 करोड़ रुपये है जो भारत के सबसे किफायती अंतरिक्ष मिशनों में से एक है। इससे पहले जुलाई 2019 को चंद्रयान-2 लॉन्च की गई थी, जिसका बजट 978 करोड़ रुपये था। अगर चंद्रयान 3 के बजट की तुलना रूस के लूना-25 से करें तो उसका अनुमानित खर्च 1659 करोड़ रुपये था। चीन ने 2019 में चांग’ई-4 के जरिए चांद पर लैंडिंग की थी। इस मिशन पर चांद ने 1365 करोड़ रुपये किए थे। जबकि अमेरिका के आर्टेमिस मून मिशन जो कि साल 2025 के लिए प्रस्तावित है, उनका अनुमानित खर्च 8.3 लाख करोड़ रुपये है।
क्यों सस्ता होता है ISRO का बजट
इसरो का बजट दुनिया की बाकी स्पेस एजेंसियों के मुकाबले हमेशा कम होता है। चाहे आप मंगलयान का बजट देखें या फिर चंद्रयान 3 का बजट। हमने हमेशा कम बजट में अपने स्पेस मिशन को पूरा किया है। दरअसल इसरो तकनीक के इस्तेमाल पर भरोसा करता है, वो तकनीक जो प्रकृति से मिलती है। जैसे धरती के गुरूत्वाकर्षण से बाहर निकलने के लिए बूस्टर या आसान भाषा में समझे को शक्तिशाली रॉकेट यान की जरूरत होती है। इस रॉकेट में भारी मात्रा में ईंधन की खपत होती है और प्रोजेक्ट का बजट बढ़ता चला जाता है।
एलन मस्क की स्पेसएक्स के फॉल्कन-9 रॉकेट को लॉन्चिंग में 550 करोड़ से लेकर 1000 करोड़ रुपये तक का खर्च होता , लेकिन इसरो इसके लिए केवल 150 से 450 करोड़ रुपये तक खर्च करता है। अगर धरती से सीधे चांद की दूरी तय की जाए तो उसका खर्च ज्यादा आता है, जो कि नासा समेत दुनिया की बाकी स्पेस एजेंसियां करती है, लेकिन इसरो ऐसा नहीं करता है। उसने गुरुत्वाकर्षण का इस्तेमाल करते हुए चंद्रयान को चंद्रमा पर भेजा, जिसने खर्च कम आता है।