रूस के साथ आपसी रिश्तें खराब नहीं करना चाहता भारत/India does not want to spoil relations with Russia
रूस-यूक्रेन युद्ध में भारत तटस्थ नीति का पालन कर रहा है
रूस-यूक्रेन युद्ध में भारत तटस्थ नीति का पालन कर रहा है लेकिन उसकी भूमिका काफी बड़ी है और पूरी दुनिया उसकी ओर देख रही है। लाखों पाउंड के सख्त जरूरत वाले यूक्रेनी अनाज को मुक्त कराने के लिए संयुक्त राष्ट्र और तुर्की के बीच जुलाई में एक अहम डील हुई थी। इस दौरान भारत पर्दे के पीछे से रूस के साथ खड़ा था जो इन जहाजों का रास्ता रोक रहा था। दो महीने बाद जब रूसी सेना यूक्रेन के जापोरिज्जिया न्यूक्लियर प्लांट पर गोले बरसा रही थी और पूरी दुनिया एक भयानक परमाणु संकट को लेकर चिंता में डूबी हुई थी, भारत एक बार फिर आगे आता है लेकिन इस बार वह रूस के साथ नहीं बल्कि उसके सामने खड़ा था और मॉस्को को पीछे हटने के लिए कह रहा था। करीब नौ महीने से जारी इस युद्ध के दौरान भारत ने कई बार इस तरह के गंभीर परिस्थितियों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
आलोचना से बचता भारत
भारत ने अभी तक यूक्रेन जंग की वजह से रूस के राष्ट्रपति पुतिन की आलोचना नहीं की है। भारत और रूस के रिश्तों पर नजर रखने वाले जानकारों की मानें तो इस साल फरवरी में जब रूस ने यूक्रेन पर हमला किया तो भारत कोविड-19 के दो बुरे सालों से उबरने की कोशिशों में लगा हुआ था। महामारी ने भारत की अर्थव्यवस्था पर खासा असर डाला था। इसकी वजह से हुई लाखों मौतों और बेरोजगारी ने सरकार की चिताएं बढ़ा दी थीं। ऐसे में रूस की आलोचना निश्चित तौर पर एक बुरा फैसला होता। इसी महामारी के दौरान चीन ने भी भारत को एलएसी पर खासा परेशान किया।
इस हफ्ते भारत के विदेश मंत्री मॉस्को की यात्रा करने वाले हैं, जहां वह रूसी अधिकारियों के बैठक में आर्थिक और राजनीतिक मुद्दों पर चर्चा करेंगे। कूटनीतिज्ञ और विदेश नीति विशेषज्ञों की नजरें इस पर हैं कि क्या भारत, दुनिया के सबसे बड़े देशों में से एक के रूप में, अपने शक्ति का इस्तेमाल कर सकता है और पूर्वी और पश्चिमी देशों के दोस्त के रूप में रूस पर युद्ध को खत्म करने का दबाव डाल सकता है। न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक भारत सरकार के अधिकारी इस बात पर चर्चा कर रहे हैं कि सही समय आने पर भारत शांति स्थापित करने के प्रयासों में क्या भूमिका निभा सकता है।
भारत निभा सकता है बड़ी भूमिका
हालांकि यह संभव नहीं हो सका लेकिन इससे यह पता चलता है कि भारत को दोनों पक्षों तक पहुंच के साथ एक ‘शांतिदूत’ के रूप में देखा जा रहा है। वॉशिंगटन रिसर्च इंस्टीट्यूट द हेरिटेज फाउंडेशन में एशियन स्टडीज सेंटर के डायरेक्टर जेफ एम. स्मिथ का कहना है कि अगर रूस और यूक्रेन ने मध्यस्थता के लिए एक तटस्थ तीसरे पक्ष में रुचि दिखाई तो भारत एक मजबूत उम्मीदवार साबित हो सकता है क्योंकि दोनों ही पक्षों में उसकी विश्वसनीयता है। दशकों से भारत पश्चिमी देशों और रूस के साथ अपने संबंधों को संतुलित करके चल रहा है।