भारत की बदौलत पढ़ पाएंगे श्रीलंका के 40 लाख बच्चे पिछले साल दिए लोन से छपेंगी किताबें, इंडिया से ही लिया पेपर -
40 lakh children of Sri Lanka will be able to study

भारत की बदौलत पढ़ पाएंगे श्रीलंका के 40 लाख बच्चे पिछले साल दिए लोन से छपेंगी किताबें, इंडिया से ही लिया पेपर

भारत की मदद से आर्थिक तंगहाली से जूझ रहे श्रीलंका में 40 लाख बच्चों को किताबें मिल पाएंगी (40 lakh children of Sri Lanka will be able to study)। इसकी जानकारी खुद भारतीय हाई कमिशन ने दी है। दरअसल पिछली साल मार्च में इकोनॉमिक क्राइसिस से गुजर रहे श्रीलंका को भारत ने 8 हजार 196 करोड़ रुपए की क्रेडिट फैसिलिटी दी थी। ताकि वहां जरूरी सामान की सप्लाई जारी रहे सके। इसी क्रेडिट फैसिलिटी में से 8 करोड़ रुपए का इस्तेमाल करते हुए श्रीलंका, भारत से प्रिंटिग पेपर और उससे जुड़ा मैटिरियल खरीदेगा। जिससे वहां के बच्चों की किताबे छपेंगी।

India ने अब तक श्रीलंका को दी 32 हजार करोड़ रुपए की मदद

भारत ने नेबरहूड फर्स्ट पॉलिसी के तहत कई तरह से श्रीलंका को मदद भेजी है। रिपोर्ट्स के मुताबिक भारत ने अब तक श्रीलंका को 32 हजार करोड़ रुपए का लोन दिया है। इसे जरूरी सामान, पेट्रोल, फर्टिलाइजर्स, रेलवे और एनर्जी से जुड़े कामों में खर्च किया गया है।

दरअसल, कुछ महीने पहले श्रीलंका दिवालिया हो गया था। इसके बाद वहां सिविल वॉर के हालात बन गए थे। इस दौर में भारत सरकार ने फूड, फ्यूल और मेडिसिन के साथ करीब 3 अरब डॉलर का फॉरेन डिपॉजिट भी अपने इस पड़ोसी को दिया था।

श्रीलंका हमेशा भारत का शुक्रगुजार रहेगा’

तीन दिन पहले ही श्रीलंका के विदेश मंत्री ने एक पॉडकास्ट को दिए इंटरव्यू में कहा था कि मुश्किल वक्त में भारत ने उनके देश की सबसे ज्यादा मदद की है और इसके लिए श्रीलंका हमेशा भारत का शुक्रगुजार और अहसानमंद रहेगा। श्रीलंकाई फॉरेन मिनिस्टर अली साब्रे ने कहा- सच्चा दोस्त वही होता है, जो मुश्किल वक्त और खराब हालात में आपका हाथ थामे और मदद करे। भारत ने यही किया है।

जानें कैसे कर्ज ने श्रीलंका को तबाह किया

एक दशक के दौरान श्रीलंका की सरकारों ने जमकर कर्ज लिए, लेकिन इसका सही तरीके से इस्तेमाल करने के बजाय दुरुपयोग ही किया। 2010 के बाद से ही लगातार श्रीलंका का विदेशी कर्ज बढ़ता गया। श्रीलंका ने अपने ज्यादातर कर्ज चीन, जापान और भारत से लिए।

2018 से 2019 तक श्रीलंका के प्रधानमंत्री रहे रानिल विक्रमसिंघे ने हंबनटोटा पोर्ट को चीन को 99 साल की लीज पर दे दिया था। ऐसा चीन के लोन के पेमेंट के बदले किया गया था। ऐसी नीतियों ने उसके पतन की शुरुआत की।

उस पर वर्ल्ड बैंक, एशियन डेवलेपमेंट बैंक जैसे ऑर्गेनाइजेशन का भी पैसा बकाया है। साथ ही उसने इंटरनेशनल मार्केट से भी उधार लिया है। श्रीलंका की एक्सपोर्ट से अनुमानित आय 12 अरब डॉलर है, जबकि इम्पोर्ट से उसका खर्च करीब 22 अरब डॉलर है, यानी उसका व्यापार घाटा 10 अरब डॉलर है।

श्रीलंका जरूरत की लगभग सभी चीजें, जैसे-दवाएं, खाने के सामान और फ्यूल के लिए बुरी तरह इम्पोर्ट पर निर्भर है। ऐसे में विदेशी मुद्रा की कमी की वजह से वह ये जरूरी चीजें नहीं खरीद पा रहा है।

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